Bhagavad Gita Chapter 14, Verse 5

(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)

सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।

निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥

सत, रज,तम, गुण प्रकृति से ही लेते हैं जन्म

वही देह में आत्मा को रखते हैं बंद ।।5।।

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Bhagavad Gita Chapter 14 Verse 4

श्रीमद्भगवतगीता

अध्याय-14 गुणत्रय विभाग योग-श्लोक 4

सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।

तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥

सभी योनि में मूर्तियाॅ होती जो उत्पन्न

उनकी सर्जक है प्रकृति, मैं हूॅ बीज समान।।4।।

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Gita Saar

गीता सार

 

क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।

 

जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।

 

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