(सत्, रज, तम- तीनों गुणों का विषय)
सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥
सत, रज,तम, गुण प्रकृति से ही लेते हैं जन्म
वही देह में आत्मा को रखते हैं बंद ।।5।।
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सत्त्वं रजस्तम इति गुणाः प्रकृतिसम्भवाः ।
निबध्नन्ति महाबाहो देहे देहिनमव्ययम् ॥
सत, रज,तम, गुण प्रकृति से ही लेते हैं जन्म
वही देह में आत्मा को रखते हैं बंद ।।5।।
Continue readingश्रीमद्भगवतगीता
अध्याय-14 गुणत्रय विभाग योग-श्लोक 4
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः ।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता ॥
सभी योनि में मूर्तियाॅ होती जो उत्पन्न
उनकी सर्जक है प्रकृति, मैं हूॅ बीज समान।।4।।
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क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? अात्मा ना पैदा होती है, न मरती है।
जो हुअा, वह अच्छा हुअा, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप न करो। भविष्य की चिन्ता न करो। वर्तमान चल रहा है।